hindisamay head


अ+ अ-

कविता

ये हमारे दौर का फनकार है

यश मालवीय


बाँधता है घड़ी
            लेकिन वक्त का बीमार है
            ये हमारे दौर का फनकार है।

हैं कई चेहरे कि जिनमें
एक भी अपना नहीं है
आग ठंडी है, किसी भी
आग में तपना नहीं है

बंद दरवाजे सरीखा
या कि चुप दीवार है
ये हमारे दौर का फनकार है।

रोज थोड़ी और काई
जम रही है सोच में
बोलता ही नहीं, जाने
पड़ा किस संकोच में ?

चुका कैलेंडर
कि बीते दिनों का अखबार है
ये हमारे दौर का फनकार है।

कुछ नहीं प्रतिरोध
खोया हुआ सारा शोध ही
जिंदगी का सच हुए
गतिरोध या अवरोध ही
बाढ़ में है नाव
टूटी बाँह-सी पतवार है
ये हमारे दौर का फनकार है।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में यश मालवीय की रचनाएँ